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Civic & Social Organization
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स्वदेशी का अर्थ है – ‘अपने देश का’ अथवा ‘अपने देश में निर्मित’। वृहद अर्थ में किसी भौगोलिक क्षेत्र में जन्मी, निर्मित या कल्पित वस्तुओं, नीतियों, विचारों को स्वदेशी कहते हैं। वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गान्धीजी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष , रवीन्द्रनाथ ठाकुर , वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे ” स्वराज की आत्मा” कहा। स्वदेशी आंदोलन को हर दौर में एक बड़े परिवर्तन और एक अलग वजह के लिए चलाया गया है -गांधी जी ने आजादी के लिए तो बाद के समय में आर्थिक मजबूती के लिए लेकिन आज के परिपेक्ष में यह सामाजिक और आर्थिक क्रांति के साथ -साथ जीवन को बचाने के लिए ज्यादा जरूरी हो गया है। विदेशी उत्पादों में मिलावट इसकी बड़ी वजह है। हमें अभी से गंभीर होने की जरूरत है। स्वदेशी अभियान से जुड़ें। इस आंदोलन में अपना योगदान देने के लिए हमसे तुरंत सम्पर्क करें :[email protected] Address: E 31 First Floor Near Metro Pillar -44 Vikash Marg East Delhi New Delhi -110092 Phone : 011 43020189 +91 888 222 9 888
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